Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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जो आदमी अनपढ़ हो, हिंदी तक नहीं पढ़ सकता ठीक से, वह फिर शिवबाबा की मुरलियों पर कोई विशेष अर्थ करने लगे,
तो वह नज़ारा कोई कॉमेडी शो से कम नहीं रह जाता| तभी तो संगमयुग मौज़ों का युग बनेगा|
आप सबका स्वागत है शो में|
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अकाल मूर्त और अकाल तख़्त:
दीक्षित जी के हिसाब से 'अकाल मूर्त' का मतलब 'वह साकार व्यक्ति जो कभी नहीं मरता हो'| और ऐसा आदमी बस एक ही है और वह खुद है| फिर बताते कि शंकर को कभी मरते हुए नहीं दिखाते| 'मूर्त' माना साकार इनके हिसाब से|
मुरली के हिसाब से, 'मूर्त' माना साकार नहीं है| ना ही 'अकाल मूर्त' किसी एक आदमी की बात है| वैसे, यह कोई भी आदमी की ही बात नहीं है| 'अकाल मूर्त' तो आत्मा को कहा गया है| आत्मा को ही तो काल नहीं खा सकता| दीक्षित बाबा, हमेशा दीक्षित बाबा रहेंगे क्या? कल का ही पता नहीं| तो यह आत्मा के लिए कहा गया है| दूसरी बात, हर आत्मा 'अकाल मूर्त' है| हर आत्मा अविनाशी है ना| दीक्षित जी तो हर बात को पहले साकार में लाएंगे , फिर उसमें भी सिर्फ खुद पर लागू करेंगे| न शिव के लिए कुछ छोड़ेंगे, बच्चों को तो छोड़ ही दो|
'अकाल तख़्त', इनके हिसाब से, तख़्त माना भृकुटि जहाँ आत्मा निवास करती है| फिर जिसको काल न खाये वह 'अकाल तख़्त' है| जो शायद खुद दीक्षित जी अकेले है या फिर ज्यादा से ज्यादा 4.5 लाख|
मुरली के हिसाब से 'अकाल तख़्त' का मतलब शरीर, जिसमें आत्मा निवास करती है| दूसरी बात, ऐसी कौनसी भृकुटि है या शरीर है जिसको काल नहीं खावेगा? दीक्षित बाबा से पूछ लेना| ऐसा कोई तख़्त है ही नहीं| फिर अकाल तख़्त हर एक आत्मा का होता है| कोई लिमिट नहीं है| अब अकाल तख़्त नाम क्यों? माना, वह तख़्त जिसमें अकाल माना अकाल मूर्त आत्मा बैठती है| आत्मा का तख़्त है, इसीलिए अकाल तख़्त|
मुरली प्रूफ:
जो आदमी अनपढ़ हो, हिंदी तक नहीं पढ़ सकता ठीक से, वह फिर शिवबाबा की मुरलियों पर कोई विशेष अर्थ करने लगे,
तो वह नज़ारा कोई कॉमेडी शो से कम नहीं रह जाता| तभी तो संगमयुग मौज़ों का युग बनेगा|
आप सबका स्वागत है शो में|
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अकाल मूर्त और अकाल तख़्त:
दीक्षित जी के हिसाब से 'अकाल मूर्त' का मतलब 'वह साकार व्यक्ति जो कभी नहीं मरता हो'| और ऐसा आदमी बस एक ही है और वह खुद है| फिर बताते कि शंकर को कभी मरते हुए नहीं दिखाते| 'मूर्त' माना साकार इनके हिसाब से|
मुरली के हिसाब से, 'मूर्त' माना साकार नहीं है| ना ही 'अकाल मूर्त' किसी एक आदमी की बात है| वैसे, यह कोई भी आदमी की ही बात नहीं है| 'अकाल मूर्त' तो आत्मा को कहा गया है| आत्मा को ही तो काल नहीं खा सकता| दीक्षित बाबा, हमेशा दीक्षित बाबा रहेंगे क्या? कल का ही पता नहीं| तो यह आत्मा के लिए कहा गया है| दूसरी बात, हर आत्मा 'अकाल मूर्त' है| हर आत्मा अविनाशी है ना| दीक्षित जी तो हर बात को पहले साकार में लाएंगे , फिर उसमें भी सिर्फ खुद पर लागू करेंगे| न शिव के लिए कुछ छोड़ेंगे, बच्चों को तो छोड़ ही दो|
'अकाल तख़्त', इनके हिसाब से, तख़्त माना भृकुटि जहाँ आत्मा निवास करती है| फिर जिसको काल न खाये वह 'अकाल तख़्त' है| जो शायद खुद दीक्षित जी अकेले है या फिर ज्यादा से ज्यादा 4.5 लाख|
मुरली के हिसाब से 'अकाल तख़्त' का मतलब शरीर, जिसमें आत्मा निवास करती है| दूसरी बात, ऐसी कौनसी भृकुटि है या शरीर है जिसको काल नहीं खावेगा? दीक्षित बाबा से पूछ लेना| ऐसा कोई तख़्त है ही नहीं| फिर अकाल तख़्त हर एक आत्मा का होता है| कोई लिमिट नहीं है| अब अकाल तख़्त नाम क्यों? माना, वह तख़्त जिसमें अकाल माना अकाल मूर्त आत्मा बैठती है| आत्मा का तख़्त है, इसीलिए अकाल तख़्त|
मुरली प्रूफ:
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
'ब्रह्मपुत्र कौन है'?, 'मनमनाभव, मध्यजीभाव का मतलब क्या'?, 'सत्य नारायण की कथा क्यों कहा गया'?, 'पूजा ब्रह्मा की न होति है किै शंकर की नहीं होती? ’, 'शंकर को नाग क्यों दिखाते है'?, 'यादगार कैसे बनते हैं'?, 'क्या सतयुग में जुड़वे बच्चे पैदा होंगे'?, 'क्या वह भाई बहन में शादी करेंगे'?, 'अश्व माना मन या शारीर रूपी घोडा'?, 'क्या सतयुग में पक्षी पर बैठके ऊपर उड़ेंगे'? ,'क्या सतयुग में वस्त्र नहीं पहनेंगे'?, 'क्या सतयुग में गुफाओं में रहेंगे'?, 'क्या सतयुग में आँखों से बच्चे पैदा होंगे क़ि योगबल से'?,
'क्या बैल शंकर पर सवार है'?, 'क्या परमपिता अलग और परमात्मा अलग'?, 'शिव अलग और बाबा अलग'?, 'संगम में शूटिंग होती है'?, 'बेहद का असली अर्थ क्या'?, 'क्या बम बम भोले का मतलब बॉम्ब से है, बॉम्बे से'?,'मुक़र्रर का अर्थ पर्मानेंट'?, 'अश्व-मेधा यज्ञ में मन को अर्पण करना है क़ि शारीर को'?, 'शिवलिंग क्या है'?, 'शिवबाबा पुरुषार्थी है'?, 'शिव की पूजा ही नहीं होती क्या'?, 'श्रीनाथ किसका यादगार है'?
लिस्ट ख़त्म नहीं होने वाली है। ऐसी बहुत सी बातें देखेंगे इस टॉपिक मे।
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
तो जैसे पिछले पोस्ट में देखा, 'मूर्त' माना 'साकार' बिल्कुल नहीं। 'मूर्त' माना कोई भी चीज जिसका कोई आकार हो। आत्मा का रूप भी है। कोई चीज को 'मूर्त' कहते। वैसे ही, त्रिमूर्ति माना तीन साकार मूर्ति नहीं। इस अज्ञानी बाबा दीक्षित जी के क्लेरिफिकेशन से कितने सारे विष्णु पार्टी निकल आईं। त्रिमूर्ति माना यह शिव का टाइटल है, तीन मूर्ति रचनेवाला, जो साकार में नही रचते। त्रिमूर्ति पर एक अलग पोस्ट बनेगा।
दीक्षित जी कहते है- "ब्रह्मा की तो पूजा नहीं होती है भक्तीमार्ग में,मंदिर नहीं बनते है। क्योंकि वह जीते जी सम्पूर्ण नहीं बनता, अधूरा ही शारीर छोड़ दिया।उसी ब्रह्मा की पूजा जगदम्बा के रूप में होती है जब वह कमला देवी दीक्षित में प्रवेश करके पार्ट बजाता है"।
अरे मंद बुद्धि दीक्षित बाबा। इतनी छोटी सी बात भी समझ में नहीं आई 50 साल ज्ञान में रहके भी।
मुरली में हज़ारों बार कह दिया "ब्राह्मणों की पूजा नहीं होती, ब्राह्मणों को अलंकार नहीं देते। वास्तव में यह विष्णु के अलंकार जो है शंख, चक्र, गदा आदि यह सब तुम्हारे अलंकार है। भक्तीमार्ग में सब गलत दिखा दिया। विष्णु थोड़ी चक्र चलाता है, शंख ध्वनि करता है? लेकिन भक्तीमार्ग में तो संगमयुग को ही घूम कर दिया है। ब्राह्मण चोटी को भी उड़ा दिया, विराट रूप में सिर्फ देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ही दिखाते है।शिव को उड़ा दिया है त्रिमूर्ति में"।
यह भी बताया क्यों नहीं पूजे जाते ब्राह्मण। "क्योंक़ि, एकरस नहीं रहते। ऊपर नीचे होते रहते"। इसीलिए तुम्हारे मंदिर विष्णु के रूप में, राधा-कृष्ण के रूप में, लक्ष्मी-नारायण के रूप में बनाये जाते हैं।
तो यादगार कोई पुरुषार्थी स्टेज के नहीं बनते। अंतिम स्टेज के बनते है, रिजल्ट के बनते है। चाहे वह पास् होने वालों के हो या फेल होनेवालों के हो। दोनों ही cases में अंतिम समय में जैसा स्टेज रहा उसके यादगार बन जाते।
ब्रह्मा सो विष्णु बन गया। वैसे ही सब ब्राह्मण, ब्राह्मण सो देवता बन जाते। तो उस रूप में पूजे जाते।
बाकि शंकर और राम के यादगार कैसे बने हुए है? यह एक अलग पोस्ट बनेगा।
तो ब्रह्मा कोई ब्राह्मणों से अलग है क्या? वह तो मुखिया होगया। तो उसका मंदिर उसके सम्पूर्ण रूप माना विष्णु, नारायण, कृष्ण के रूप में ही बनेगा ना।
अब देखो, कृष्ण को, विष्णु को (दोनों को) स्वदर्शन चक्र दिखाते। जिसका अर्थ बाबा ने समझाया हुआ है।
राम को, शंकर को क्यों नहीं दिखाते चक्र? उलटा बाण दे दिया। क्यों? फेल होगया ना। बाबा ने कहा ना "मैं कहता हूँ मेरे दो बच्चे हैं। एक तो ब्रह्मा सो विष्णु बन जाता है (मतलब वह एक ही होगया)। बाकि बचता है शंकर"। मतलब जो विष्णु नहीं बना।
शंकर के मंदिर कहाँ बनते हैं? पूजा भी नहीं होती। इसको भी एक अलग पोस्ट में देखेंगे विस्तार में।
इतनी सिंपल सी बात को कैसे घुमा दिया मंद बुद्धि बाबा दीक्षित जी ने।
उलटा दीक्षित जी कहते है "शंकर को तपस्या करते जो दिखाया वह पुरुषार्थी स्टेज का यादगार है। राम को भी बाण जो दिखाया, वह पुरुषार्थी स्टेज का यादगार है"।
पुरुषार्थी स्टेज का यादगार नही बनते मेरे भाई। हम ऊपर नीचे होते रहते हैं। वह दोनों यादगार शंकर और राम के अंतिम समय के ही हैं। मतलब अंतिम समय में भी वह सम्पूर्ण नहीं बन पाएं। अधूरा ही रह गए।
दीक्षित जी कहते है- "ब्रह्मा की तो पूजा नहीं होती है भक्तीमार्ग में,मंदिर नहीं बनते है। क्योंकि वह जीते जी सम्पूर्ण नहीं बनता, अधूरा ही शारीर छोड़ दिया।उसी ब्रह्मा की पूजा जगदम्बा के रूप में होती है जब वह कमला देवी दीक्षित में प्रवेश करके पार्ट बजाता है"।
अरे मंद बुद्धि दीक्षित बाबा। इतनी छोटी सी बात भी समझ में नहीं आई 50 साल ज्ञान में रहके भी।
मुरली में हज़ारों बार कह दिया "ब्राह्मणों की पूजा नहीं होती, ब्राह्मणों को अलंकार नहीं देते। वास्तव में यह विष्णु के अलंकार जो है शंख, चक्र, गदा आदि यह सब तुम्हारे अलंकार है। भक्तीमार्ग में सब गलत दिखा दिया। विष्णु थोड़ी चक्र चलाता है, शंख ध्वनि करता है? लेकिन भक्तीमार्ग में तो संगमयुग को ही घूम कर दिया है। ब्राह्मण चोटी को भी उड़ा दिया, विराट रूप में सिर्फ देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ही दिखाते है।शिव को उड़ा दिया है त्रिमूर्ति में"।
यह भी बताया क्यों नहीं पूजे जाते ब्राह्मण। "क्योंक़ि, एकरस नहीं रहते। ऊपर नीचे होते रहते"। इसीलिए तुम्हारे मंदिर विष्णु के रूप में, राधा-कृष्ण के रूप में, लक्ष्मी-नारायण के रूप में बनाये जाते हैं।
तो यादगार कोई पुरुषार्थी स्टेज के नहीं बनते। अंतिम स्टेज के बनते है, रिजल्ट के बनते है। चाहे वह पास् होने वालों के हो या फेल होनेवालों के हो। दोनों ही cases में अंतिम समय में जैसा स्टेज रहा उसके यादगार बन जाते।
ब्रह्मा सो विष्णु बन गया। वैसे ही सब ब्राह्मण, ब्राह्मण सो देवता बन जाते। तो उस रूप में पूजे जाते।
बाकि शंकर और राम के यादगार कैसे बने हुए है? यह एक अलग पोस्ट बनेगा।
तो ब्रह्मा कोई ब्राह्मणों से अलग है क्या? वह तो मुखिया होगया। तो उसका मंदिर उसके सम्पूर्ण रूप माना विष्णु, नारायण, कृष्ण के रूप में ही बनेगा ना।
अब देखो, कृष्ण को, विष्णु को (दोनों को) स्वदर्शन चक्र दिखाते। जिसका अर्थ बाबा ने समझाया हुआ है।
राम को, शंकर को क्यों नहीं दिखाते चक्र? उलटा बाण दे दिया। क्यों? फेल होगया ना। बाबा ने कहा ना "मैं कहता हूँ मेरे दो बच्चे हैं। एक तो ब्रह्मा सो विष्णु बन जाता है (मतलब वह एक ही होगया)। बाकि बचता है शंकर"। मतलब जो विष्णु नहीं बना।
शंकर के मंदिर कहाँ बनते हैं? पूजा भी नहीं होती। इसको भी एक अलग पोस्ट में देखेंगे विस्तार में।
इतनी सिंपल सी बात को कैसे घुमा दिया मंद बुद्धि बाबा दीक्षित जी ने।
उलटा दीक्षित जी कहते है "शंकर को तपस्या करते जो दिखाया वह पुरुषार्थी स्टेज का यादगार है। राम को भी बाण जो दिखाया, वह पुरुषार्थी स्टेज का यादगार है"।
पुरुषार्थी स्टेज का यादगार नही बनते मेरे भाई। हम ऊपर नीचे होते रहते हैं। वह दोनों यादगार शंकर और राम के अंतिम समय के ही हैं। मतलब अंतिम समय में भी वह सम्पूर्ण नहीं बन पाएं। अधूरा ही रह गए।
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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'.......शंकर को गले में सांप क्यों दिया है, योग में ऐसा क्यों बैठता, यह सब बातें छोड़ दो... आगे चल समझते जायेंगे'| (14.3.88 पु.2 अंत)
[पूरा पॉइंट देखना हो तो PBKs के "सच्ची गीता" में "शंकर यहाँ ही है" टॉपिक में पु.15/16 में मिलेगा]
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चलो अब समझने की कोशिश करते है। याद में क्यों बैठा है, यह तो समझ गए| क्योंकि अधूरा है, विकार है अंदर। देवता बना ही नहीं, तपस्या करते करते ही रह गया और रिजल्ट निकल गए।
बाकि 5 जगह सांप दिखाते है| मुरली में कहा है '5 विकार को रावण कहा जाता है'| यह भी समझाया एक मुरली में कि 10 सिर क्यों दिखाते है, '5 विकार पुरुष के, 5 स्त्री के'| तो क्या शंकर रावण का रूप है पुरुष के रूप में?
अच्छा, सांप तो शिवलिंग के ऊपर भी दिखाते है| कभी 5 मुख वाला, कभी एक मुख वाला दिखाते है| उसमें फरक यह है कि जैसे विष्णु को दिखाते है, वैसे वाला सांप है| विजय की निशानी| छत्र छाया के रूप में है वह सांप| माया जीत कहो, 5 विकारों पर जीत कहो| शिव के मंदिर में जाके ध्यान से देखो|बाकि शंकर को ऐसा कोई सांप नहीं दिखाएंगे जिस पर विजय पाया हो और वह उसका छात्र छाया बनके रक्षा कर रहा हो| बरोबर 5 सांप दिखाते है और वह भी सब काटने वाले सांप। मतलब, माया जीत की निशानी नहीं है। विकारी की निशानी है। तो विकार है, तभी तो तपस्या कर रहे है| नहीं तो विष्णु जैसे मंदिर में पूजा होती| अंतिम समय तक यहीं हाल रहा|
तो शंकर जी का यादगार उस रूप में बन गया, अधूरा रहने की निशानी के रूप में।
शंकर के मंदिर कभी देखा है? बाबा तो कहते ना, दिलवाड़ा में तुम्हारा एक्यूरेट यादगार है। जहाँ, ड्रामानुसार, हमारे बहुत से यादगार बने हुए हैं। बाबा भी वहीँ पर आके पढ़ाके गए। पूरा माउंट आबू घूम लो, एक भी मंदिर नहीं मिलेंगे शंकर जी के। कम्पिल, फर्रुखाबाद में भी नहीं मिलेंगे।
ज्यादातर, मंदिर के बहार बिठाते है शंकर को। मंदिर में जगह क्यों नहीं मिली? किधर किधर शिवलिंग के साथ, पीछे शंकर जी की मूर्ति राखी हुई होती है, तो भी पूजा नहीं होती है। कभी खाज़ के कोठरी में रखा होता है।
भले, भक्तीमार्ग में शिव-शंकर को मिला दिया जिससे दुर्गति हुई। यादगार,पूजा तो ड्रामा के हाथ में है। वह तो एक्यूरेट बनेंगे।
महावीर की बात अलग है। उसकी तपस्या स्टेज के साथ सम्पूर्ण स्टेज भी दिखाया ऊपर दिलवाड़ा में। इसीलिए बोला, एक्यूरेट यादगार है।
दीक्षित बाबा तो कह देते, महावीर और शंकर एक ही है। इतना बड़ा झूठ! महावीर को हमेशा क्लीन शेव सिखाते, कोई सर्प नहीं दिखाते उसको।
बाबा ने मुरली में बताया "शंकर से तुम्हारा कोई कनेक्शन (सम्बन्ध) नहीं"। मतलब, वह एक अलग ग्रुप है उसका। लेकिन हम PBKs ने तो "सर्वसंबंध" जोड़ दिया। मुरली में क्लियर बताया, “यह सब पुरुषार्थ कोई जमा नहीं होता बिलकुल”। उलटा disservice कर दिया हम लोगों ने।
रावण तो बड़ा होता है ना। भक्ति का विस्तार कितना बड़ा है। ज्ञान है एक सेकंड का। तो रावण राज्य में शंकर के बड़े बड़े मूर्ति तो बनेंगे ही। उसीका राज्य है।
शंकर पर अभी बहुत बातें है जो बताएँगे बाद में| साथ में मुरली पॉइंट्स का अलग टॉपिक बनाएंगे, उसमें शंकर पर भी अलग से पॉइंट्स दिखाया जायेगा।
इस पोस्ट से सम्बंधित कुछ मुरली प्रूफ:
1. यादगार अंतिम समय के रिजल्ट के आधार पर बनते है, 2. शंकर सो विष्णु या देवता नहीं बनता, ब्राह्मण ही नहीं बना; पहला जन्म ही नहीं, तो देवता कैसे बनेगा,
27.7.65, प्रा.पु. 4 अंत 3. बाबा दीक्षित तो ब्रह्मा को मानते ही नहीं| उल्टा उसकी ग्लानि करते रहते हमेशा| 12.3.68,प्रा. क्लास का पेज 4 पूरा पढ़ना अच्छे से, समझ में आएगा दीक्षित जी क्या बनने वाले है|| मस्त समझाया हुआ है| वैसे इसका पहला पेज में भी अच्छे पॉइंट्स है| एक छोटा सा हिस्सा यहाँ दिखाया,
'.......शंकर को गले में सांप क्यों दिया है, योग में ऐसा क्यों बैठता, यह सब बातें छोड़ दो... आगे चल समझते जायेंगे'| (14.3.88 पु.2 अंत)
[पूरा पॉइंट देखना हो तो PBKs के "सच्ची गीता" में "शंकर यहाँ ही है" टॉपिक में पु.15/16 में मिलेगा]
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चलो अब समझने की कोशिश करते है। याद में क्यों बैठा है, यह तो समझ गए| क्योंकि अधूरा है, विकार है अंदर। देवता बना ही नहीं, तपस्या करते करते ही रह गया और रिजल्ट निकल गए।
बाकि 5 जगह सांप दिखाते है| मुरली में कहा है '5 विकार को रावण कहा जाता है'| यह भी समझाया एक मुरली में कि 10 सिर क्यों दिखाते है, '5 विकार पुरुष के, 5 स्त्री के'| तो क्या शंकर रावण का रूप है पुरुष के रूप में?
अच्छा, सांप तो शिवलिंग के ऊपर भी दिखाते है| कभी 5 मुख वाला, कभी एक मुख वाला दिखाते है| उसमें फरक यह है कि जैसे विष्णु को दिखाते है, वैसे वाला सांप है| विजय की निशानी| छत्र छाया के रूप में है वह सांप| माया जीत कहो, 5 विकारों पर जीत कहो| शिव के मंदिर में जाके ध्यान से देखो|बाकि शंकर को ऐसा कोई सांप नहीं दिखाएंगे जिस पर विजय पाया हो और वह उसका छात्र छाया बनके रक्षा कर रहा हो| बरोबर 5 सांप दिखाते है और वह भी सब काटने वाले सांप। मतलब, माया जीत की निशानी नहीं है। विकारी की निशानी है। तो विकार है, तभी तो तपस्या कर रहे है| नहीं तो विष्णु जैसे मंदिर में पूजा होती| अंतिम समय तक यहीं हाल रहा|
तो शंकर जी का यादगार उस रूप में बन गया, अधूरा रहने की निशानी के रूप में।
शंकर के मंदिर कभी देखा है? बाबा तो कहते ना, दिलवाड़ा में तुम्हारा एक्यूरेट यादगार है। जहाँ, ड्रामानुसार, हमारे बहुत से यादगार बने हुए हैं। बाबा भी वहीँ पर आके पढ़ाके गए। पूरा माउंट आबू घूम लो, एक भी मंदिर नहीं मिलेंगे शंकर जी के। कम्पिल, फर्रुखाबाद में भी नहीं मिलेंगे।
ज्यादातर, मंदिर के बहार बिठाते है शंकर को। मंदिर में जगह क्यों नहीं मिली? किधर किधर शिवलिंग के साथ, पीछे शंकर जी की मूर्ति राखी हुई होती है, तो भी पूजा नहीं होती है। कभी खाज़ के कोठरी में रखा होता है।
भले, भक्तीमार्ग में शिव-शंकर को मिला दिया जिससे दुर्गति हुई। यादगार,पूजा तो ड्रामा के हाथ में है। वह तो एक्यूरेट बनेंगे।
महावीर की बात अलग है। उसकी तपस्या स्टेज के साथ सम्पूर्ण स्टेज भी दिखाया ऊपर दिलवाड़ा में। इसीलिए बोला, एक्यूरेट यादगार है।
दीक्षित बाबा तो कह देते, महावीर और शंकर एक ही है। इतना बड़ा झूठ! महावीर को हमेशा क्लीन शेव सिखाते, कोई सर्प नहीं दिखाते उसको।
बाबा ने मुरली में बताया "शंकर से तुम्हारा कोई कनेक्शन (सम्बन्ध) नहीं"। मतलब, वह एक अलग ग्रुप है उसका। लेकिन हम PBKs ने तो "सर्वसंबंध" जोड़ दिया। मुरली में क्लियर बताया, “यह सब पुरुषार्थ कोई जमा नहीं होता बिलकुल”। उलटा disservice कर दिया हम लोगों ने।
रावण तो बड़ा होता है ना। भक्ति का विस्तार कितना बड़ा है। ज्ञान है एक सेकंड का। तो रावण राज्य में शंकर के बड़े बड़े मूर्ति तो बनेंगे ही। उसीका राज्य है।
शंकर पर अभी बहुत बातें है जो बताएँगे बाद में| साथ में मुरली पॉइंट्स का अलग टॉपिक बनाएंगे, उसमें शंकर पर भी अलग से पॉइंट्स दिखाया जायेगा।
इस पोस्ट से सम्बंधित कुछ मुरली प्रूफ:
1. यादगार अंतिम समय के रिजल्ट के आधार पर बनते है, 2. शंकर सो विष्णु या देवता नहीं बनता, ब्राह्मण ही नहीं बना; पहला जन्म ही नहीं, तो देवता कैसे बनेगा,
27.7.65, प्रा.पु. 4 अंत 3. बाबा दीक्षित तो ब्रह्मा को मानते ही नहीं| उल्टा उसकी ग्लानि करते रहते हमेशा| 12.3.68,प्रा. क्लास का पेज 4 पूरा पढ़ना अच्छे से, समझ में आएगा दीक्षित जी क्या बनने वाले है|| मस्त समझाया हुआ है| वैसे इसका पहला पेज में भी अच्छे पॉइंट्स है| एक छोटा सा हिस्सा यहाँ दिखाया,
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
ब्रह्मपुत्रा कौन है?
मुरली में भी नाम ब्रह्मपुत्रा आया, उस नदी का भी नाम ब्रह्मपुत्रा ही है| लेकिन दीक्षित जी को पसंद नहीं आया नाम| उनको चाइए 'ब्रह्मपुत्री, इसके ऊपर एकदम मस्ती में बातें करते रहते है| आखिर उसको ब्रह्मपुत्री बना ही डाला| विकारी बुद्धि है ना| फिर 'वेदांती बहन' माना PBKs जिसे छोटी माँ समझते है उनको बना दिया| कहते कि नदी है तो स्त्री ही होना चाइए (आत्मा इनको याद कहाँ रहती है)| फिर तो पूछो ही मत, ब्रह्मपुत्री को लेके ढेर सारे क्लैरिफिकेशन, वार्तालाप क्लास वगैरा|
मुरली में सीधा सीधा सरल भाषा में 'ब्रह्मा' को 'ब्रह्मपुत्रा' नदी बताया| छोटा बच्चा भी पढ़े तो भी समझ जायेगा, इतना क्लियर बताया|
वैसे मुरली में कभी कभी 'ब्रह्मपुत्री' भी आया, तो भी 'ब्रह्मा' को ही बताया|
मुरली प्रूफ:
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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दीक्षित जी का यह वाला क्लैरिफिकेशन सुनने के बाद फिर कोई क्लास सुनने की जरुरत नहीं पड़ेगी शायद PBKs को |
(बहुत मज़ा आनेवाला है)
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बाबा दीक्षित कितना अनपढ़ है, यह लाइव दिखाएंगे अभी|
29.8.67, प्रा.पु.7 का क्लैरिफिकेशन चल रहा है VCD 2657 (Date 01.10.2018)
में|
कागज़ में आया, इसका क्लैरिफिकेशन मैंने आज, एक 5वी क्लास का बच्चे से पूछा| तो उसने पढ़के बताया इसका मतलब, "तो तुम्ही देवता बनते हो, तुम्हारे आलावा बाकि जो मनुष्य है दुनिया में, वह कैसे बनेंगे जब तक वह यहाँ हमारे पास न आते"|
एकदम सही बताया बच्चे ने| कोई भी यही बताएगा, सिंपल हिंदी है|
अब बाबा दीक्षित कैसे पढ़ते है देखो,
https://youtu.be/FBk9X_OaK90
"थोड़े ही बनते" को "राधा-कृष्ण थोड़ा देवता बनेंगे तुम पूरा बनेंगे" ऐसे क्लैरिफिकेशन दे दिया अनपढ़ आदमी| एक ही लाइन को अलग अलग करके क्लैरिफिकेशन कैसे देता कोई?
"जब तक यहाँ आएंगे" उसका फिर अलग क्लैरिफिकेशन| अब और करो क्लास आप PBKs|
ओरिजिनल क्लास (40:18 mins to 42:04 mins) : https://www.youtube.com/watch?v=uLL3l1A9X9M
कागज की मुरली (पु.7, लाइन 18): http://www.PBKs.info/Streaming/MP3/bma/1967/45.pdf
दीक्षित जी का यह वाला क्लैरिफिकेशन सुनने के बाद फिर कोई क्लास सुनने की जरुरत नहीं पड़ेगी शायद PBKs को |
(बहुत मज़ा आनेवाला है)
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बाबा दीक्षित कितना अनपढ़ है, यह लाइव दिखाएंगे अभी|
29.8.67, प्रा.पु.7 का क्लैरिफिकेशन चल रहा है VCD 2657 (Date 01.10.2018)
में|
कागज़ में आया, इसका क्लैरिफिकेशन मैंने आज, एक 5वी क्लास का बच्चे से पूछा| तो उसने पढ़के बताया इसका मतलब, "तो तुम्ही देवता बनते हो, तुम्हारे आलावा बाकि जो मनुष्य है दुनिया में, वह कैसे बनेंगे जब तक वह यहाँ हमारे पास न आते"|
एकदम सही बताया बच्चे ने| कोई भी यही बताएगा, सिंपल हिंदी है|
अब बाबा दीक्षित कैसे पढ़ते है देखो,
https://youtu.be/FBk9X_OaK90
"थोड़े ही बनते" को "राधा-कृष्ण थोड़ा देवता बनेंगे तुम पूरा बनेंगे" ऐसे क्लैरिफिकेशन दे दिया अनपढ़ आदमी| एक ही लाइन को अलग अलग करके क्लैरिफिकेशन कैसे देता कोई?
"जब तक यहाँ आएंगे" उसका फिर अलग क्लैरिफिकेशन| अब और करो क्लास आप PBKs|
ओरिजिनल क्लास (40:18 mins to 42:04 mins) : https://www.youtube.com/watch?v=uLL3l1A9X9M
कागज की मुरली (पु.7, लाइन 18): http://www.PBKs.info/Streaming/MP3/bma/1967/45.pdf
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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इतना अनपढ़, स्वार्थी और झूठा इंसान भगवान कैसे हो सकता है?
जरूर शैतान ही है|
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एक और क्लैरिफिकेशन देख लो ढोंगी दीक्षित बाबा का,
https://www.youtube.com/watch?v=OFkG4nAMNd0&t=73s
इससे पहले वाला पोस्ट का वीडियो,
https://www.youtube.com/watch?v=FBk9X_OaK90&t=2s
इतना अनपढ़, स्वार्थी और झूठा इंसान भगवान कैसे हो सकता है?
जरूर शैतान ही है|
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एक और क्लैरिफिकेशन देख लो ढोंगी दीक्षित बाबा का,
https://www.youtube.com/watch?v=OFkG4nAMNd0&t=73s
इससे पहले वाला पोस्ट का वीडियो,
https://www.youtube.com/watch?v=FBk9X_OaK90&t=2s
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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"ऐसी झूठी बातें बनाना सीखना हो तो व्यास भगवान से सीखो"| [मु.15.7.66,प्रा.पु.1 मध्य]
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पु.
मध्य
अनपढ़, अज्ञानी दीक्षित बाबा तो हमेशा व्यास की महिमा करते रहते है| कहते है "व्यास की प्रसन्नता से गीता मिली", "वि माना विशेष आस माना आसन, विशेष रूप से आसन लगाके बैठ गया ज्ञान सुनाने" वगैरा वगैरा| वह भी गर्व से, खुद को ही "व्यास" का पार्ट बताते है|
मतलब, जो मुरली में बोला, उसके खिलाफ बोलेंगे| जो नहीं बनने के लिए बताया, वही बनना और बनाना, यही "एडवांस नॉलेज" है| सब उलटा करना|
मुरली में देख लो क्या बताया व्यास पर:
(1). 1.1.69.प्रा. आखरी पेज में मध्य में, (2). 21.2.67.रात्रि.पु.1 मध्य, (3). 29.1.67.प्रा.पु.1 आदि,
"ऐसी झूठी बातें बनाना सीखना हो तो व्यास भगवान से सीखो"| [मु.15.7.66,प्रा.पु.1 मध्य]
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पु.
मध्य
अनपढ़, अज्ञानी दीक्षित बाबा तो हमेशा व्यास की महिमा करते रहते है| कहते है "व्यास की प्रसन्नता से गीता मिली", "वि माना विशेष आस माना आसन, विशेष रूप से आसन लगाके बैठ गया ज्ञान सुनाने" वगैरा वगैरा| वह भी गर्व से, खुद को ही "व्यास" का पार्ट बताते है|
मतलब, जो मुरली में बोला, उसके खिलाफ बोलेंगे| जो नहीं बनने के लिए बताया, वही बनना और बनाना, यही "एडवांस नॉलेज" है| सब उलटा करना|
मुरली में देख लो क्या बताया व्यास पर:
(1). 1.1.69.प्रा. आखरी पेज में मध्य में, (2). 21.2.67.रात्रि.पु.1 मध्य, (3). 29.1.67.प्रा.पु.1 आदि,
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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एक मुरली में बताया, "राम कौन है? ॐ जय राम का अर्थ है आई ऍम परमात्मा| फिर परमात्मा पुनर्जन्म में नहीं आते हैं"|
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पीबीकेज में सिखाया जाता कि त्रेता वाला राम ही "पतित-पावन है", मतलब बाबा दीक्षित| वही "बाप है", उसकी मत से ही "सद्गति होती है" और इनका दीक्षित बाबा का ही आधा कल्प, सतयुग-त्रेता में राज्य करते है, इसीलिए " रामराज्य" कहते है वगैरा वगैरा| एक मुरली में बताया, "राम कौन है? ॐ जय राम का अर्थ है आई ऍम परमात्मा| फिर परमात्मा पुनर्जन्म में नहीं आते हैं"|
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हद ही कर दी| इसके लिए फिर उन्होंने "सच्ची गीता खंड 1" में कुछ टॉपिक बनाया, जैसे "राम बाप को कहा जाता है", "रामबाप ही पतित-पावन सद्गति दाता", "राम मत से राम राज्य" वगैरा वगैरा| सारे अधूरे पॉइंट निकालके कुछ भी अज्ञान फैलाते रहते है| ओरिजिनल मुरली से टैली करो "सच्ची गीता खंड" को तो पता चलेगा कि सच क्या है|
जैसे भक्तिमार्ग में, शास्त्रों में गलत बातें उठाई है, बिलकुल वैसे ही, उससे भी कुछ ज्यादा ही अज्ञान की बातें बाबा दीक्षित एडवांस नॉलेज के नाम पर बाँट रहे है|
कुछ ओरिजिनल मुरली पॉइंट्स यहाँ दिखाएंगे जिसमें शिवबाबा ने एक-एक बात को पूरा खोलके समझाया हुआ है| "पतित-पवन सीता-राम कहना रॉंग है", "उसमें भी रघुपति राजा राम कहना बिलकुल रॉंग है", "पतित-पावन राम या कृष्ण या कोई मनुष्य नहीं हो सकता", "आधा कल्प राम-राज्य कहना रॉंग है", "जिस राम को सिमरते है भक्तिमार्ग में, वह निराकार है", "गांधी जी गाते थे 'पतित-पावन सीता-राम', फिर हाथ में 'रामायण' की जगह 'गीता' क्यों उठाते थे"? वगैरा वगैरा|
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कृष्ण या नारायण के साथ राम की तुलना कोई कर भी कैसे सकता है?
कहाँ वह विश्व का मालिक, महाराजा नारायण और कहाँ यह 'राम राजा, राम प्रजा, राम साहूकार' फिर दास दासी बनने वाला?
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कृष्ण या नारायण के साथ राम की तुलना कोई कर भी कैसे सकता है?
कहाँ वह विश्व का मालिक, महाराजा नारायण और कहाँ यह 'राम राजा, राम प्रजा, राम साहूकार' फिर दास दासी बनने वाला?
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राम जी पर कुछ और पॉइंट्स:............
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स:
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बाबा दीक्षित तो बताते कि राम आदि में फेल हुआ, अंत में नहीं| और राम-सीता जो दास-दासी बनते है उसके लिए बताते कि वह तो माँ-बाप के रूप में हर कोई अपने बच्चों के लिए दास-दासी होते है वगैरा| राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स:
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असल में राम फेल कब होता है और उसको बाण क्यों दिखाते है भक्तिमार्ग में, इस पर विस्तार में पहले ही बताया हुआ है| नीचे वाले टॉपिक में मिल जाएगा सब,
viewtopic.php?f=37&t=2721
अभी ओरिजिनल मुरली में इस पर क्या-क्या बताया हुआ है वह देखेंगे| इस विषय पर इतने पॉइंट्स मिलेंगे कि यह सब बताने में ही 15-20 दिन लग जायेंगे| इसीलिए, हम पूरा कोशिश करेंगे कि सिर्फ कुछ मुख्य-मुख्य पॉइंट्स ही दिखाया जाए ताकि ज्यादा लम्बा-लम्बा न खींचे|
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स [PART 2]:
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ध्यान से पढो, अच्छे अच्छे पॉइंट्स है जो बाबा दीक्षित कभी नहीं बताएँगे,राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स [PART 2]:
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स [PART 3]:
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------------------------------------------------------------राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स [PART 3]:
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स [PART 4]:
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पक गए एक ही टॉपिक पर बात कर-कर के| अब क्या करें, हर मुरली में ब्रह्मा उर्फ़ कृष्ण उर्फ़ नारायण की महिमा और शंकर उर्फ़ राम जी की ग्लानि लिखी हुई है| राम जी के फेल होने के बारे में कुछ IMPORTANT पॉइंट्स [PART 4]:
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शास्त्रों में इसका ठीक उल्टा होता है| अब कुछ और पॉइंट्स बताके, फिर कुछ इंटरेस्टिंग बातें शुरू करेंगे एडवांस नॉलेज पर| बाद में फिर चाहे तो वापस राम जी, शंकर जी, शिवलिंग, प्रजापिता वगैरा पर मुरली पॉइंट्स देखेंगे|
अब बस "ट्रम्प कार्ड" खेलते,
...
जैसे ऊपर वाले पॉइंट्स में देखा, भक्तिमार्ग में सब उल्टी बातें हैं|
महिमा करेंगे राम की, कृष्ण की ग्लानि करेंगे| इसीलिए बाबा हमेशा कहते है शास्त्र सब झूठें हैं|
हमारा दीक्षित बाबा कहते "मुरली तो शास्त्र हैं, यह कोई ज्ञानामृत नहीं है" और शास्त्रों में सब सच लिखा है" | इतना विपरीत?
हम एक ही बात कहेंगे, "विनाश काले विपरीत बुद्धि....."| शंकर द्वारा विनाश कि शंकर का ही विनाश? सोचो!
नीचे वाले पॉइंट में बताया, शास्त्रों में राम को त्रेता में, कृष्ण को द्वापर में ले गए| मतलब, राम की महिमा कर दी, कृष्ण से पहले आया ना| कृष्ण को द्वापर में फेंक दिया, राम के बाद|
...
11.2.67 प्रा.पु.1 मध्य में,
एक और मुरली में बताया, "जैसे त्रेता को भी सतयुग में मिलाके स्वर्ग कह देते है, जब कि वह सेमि स्वर्ग है| वैसे ही फिर, शिव को भी शंकर के साथ मिला देते है"|
दूसरी मुरली में शास्त्रों की एक अच्छी बात बताई, "रामचंद्र की बहुत बेइज्जती हुई है शास्त्रों में, लेकिन लक्ष्मी-नारायण की कभी ग्लानि नहीं लिखी हुई है"|
अब राम जी को छोडो, अगले में, 'शूटिँग', 'बेहद', 'शिवबाबा', 'मुक़र्रर रथ', 'परमात्मा', 'पतित-पावन', 'शिवलिंग' वगैरा-वगैरा जो गपोड़े हैं एडवांस नॉलेज में, उस पर बात करेंगे|
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Re: Weird interpretations on Murlis by Baba Virendra Dev Dixit
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बेहद?
शूटिंग?
बाबा माना साकार? मुक़र्रर माना परमानेंट? शिवबाबा सदा हैं?
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समय मिला तो इन बातों को अच्छे से लिखेंगे| फिलहाल शार्ट में देख लो,
बेहद?
..
शूटिंग?
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बाबा माना साकार? मुक़र्रर माना परमानेंट? शिवबाबा सदा हैं?
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बेहद?
शूटिंग?
बाबा माना साकार? मुक़र्रर माना परमानेंट? शिवबाबा सदा हैं?
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समय मिला तो इन बातों को अच्छे से लिखेंगे| फिलहाल शार्ट में देख लो,
बेहद?
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बाबा माना साकार? मुक़र्रर माना परमानेंट? शिवबाबा सदा हैं?
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